Saturday, August 29, 2015

Where Avant-Garde Meets Après-Garde...

... in that confluence lies Bajrangi Bhaijan, displaying the breathtaking, awe-inspiring, sheer power of pure Bollywood.

And why the fuck is no one talking about the art direction and mise en scène of the film? What a heady, potent mix of all styles - from naturalistic to kitsch; from interesting steadicam angles to '80s production designs; with a nod to old DD visual styles thrown in for good measure - often in the same damn scene! Who knew Kabir Khan was such a bag of goodies? 

Again, why the fuck is nobody writing about this aspect of the film in their reviews? 

To all design geeks: "Is it nothing to you, all ye that pass by?"

Sunday, August 23, 2015

पॉप क्विज़

बाबू पुरानालाल अपने नाम के विपरीत, कुछ ख़ास पुराने विचारों के आदमी नहीं थे. यही नहीं, उन्होंने क़रीब दस साल विलायत में भी गुज़ारे थे, जहाँ उन्हें कुछ विशेष दौलत शौहरत तो नहीं, पर घर वापसी पर एक ऊँची पैठ जमाने को ज़रूर मिल गयी थी. 

घर वापसी के बाद बाबू पुरानालाल देश के प्रति कुछ ख़ास जज़्बाती हो गए हों, ऐसा भी नहीं था. लेकिन ये ज़रूर था कि देश में उनके बड़े अच्छे दिन बीते. वे अपने काम में रूचि लेते थे, लोग उनका आम तौर पे सम्मान करते थे - और हाँ, उनकी बेहद पकाऊ और पेशाबी शख़्सियत के कारण उनका कोई दुश्मन वगैरह भी नहीं था. उनसे कभी आप पूछते तो वह यही कहते कि आम तौर पे वह अपनी ज़िन्दगी से संतुष्ट हैं, और उनके अधिकांश दिन बड़े आराम और मज़े में कटते हैं.

जब तट पर पानी बढ़ने लगा और लहरें इतनी ऊंची उठने लगीं कि अमीरों को अपनी मौज में खलल पड़ती मालूम हुई तब उनके कई दोस्तों, भाई-बहनों और रिश्तेदारों ने दूसरे देशों में पलायन करना शुरू कर दिया। कुछ सालों बाद बात इतनी बढ़ गयी कि खुद बाबू पुरानालाल के बच्चों ने भी खुद को विदेश के लिए रवाना होता पाया और अपने अड़ियल बाप से गुहार की कि वो भी देश से निकल लें. लेकिन बाबू पुरानालाल टाल गए - हँसते हुए कहने लगे - "अब जब सारे एलीट देश छोड़ के जा रहे हैं तो सत्ता की खींचतान में कम्पटीशन कम होगा - मेरे लिए तो यहीं बेहतर है."

कई दशकों बाद भी विदेश में सेटल्ड बाबू पुरानालाल की संतानें अपने बच्चों को बाबूजी की देशभक्ति की कहानियां सुनाते पायी जा सकती थीं. 

...

क्या बाबू पुरानालाल देशभक्त थे? क्यों? अथवा क्यों नहीं? सविस्तार जवाब दीजिये (10 अंक)

Saturday, August 22, 2015

Bombay Velvet...

... is breathtakingly boring. 

Boo.

Friday, August 21, 2015

Thought of the Day

"Depression is melancholy minus its charms."
Susan Sontag, great purveyor of all things Hungarian.

Tuesday, August 18, 2015

रगों में दौड़ते फिरने के...

रात के 3 बज रहे हैं और तुम इस मटियाले अँधेरे में एक ओर बड़े गौर से देख रहे हो. "क्या ऊब गए हैं", "कुछ तो नया करना है", "कुछ एक्साइटिंग करूंगा... कुछ मस्त", "बहुत हो गया तुमरा आलस ससुर!", "नया, एक्साइटिंग, इंटेंस… ज़बरदस्त!"

तुम गौर से देखते हो, उलटते पलटते हो.… मुस्कुराते हो: "हाँ यार, यही करूंगा, बढ़िया आईडिया है"; और उत्साह में: "वाह लड़के क्या खूब सोचा है!"

पीटर नदास की पैरेलल स्टोरीज़ (समानान्तर कथाएँ), जिसे तुम स्ट्रैंड से 8 रूपये में एक दर्दनाक सेल में जूनूनवश खरीद लाये थे . 

(अट्ठारह साल का) भार महसूस करते हो - बकौल ए के हंगल, इस से भारी बोझ, "बाप के कन्धों पर बेटे का जनाज़ा", बस यही हो सकता है.  

और सो दे से.